मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

चंद शेर / बशीर बद्र

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।

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ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं

पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।

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जी बहुत चाहता है सच बोलें

क्या करें हौसला नहीं होता ।

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दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे

जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

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एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा

ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।

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इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी

लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।

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वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है

कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।

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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।

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पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,

आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।

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तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.

फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।

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मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ

चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।

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