सब कुछ खाक हुआ है लेकिन चेहरा क्या नूरानी है
पत्थर नीचे बैठ गया है, ऊपर बहता पानी है
बचपन से मेरी आदत है फूल छुपा कर रखता हूं
हाथों में जलता सूरज है, दिल में रात की रानी है
दफ़न हुए रातों के किस्से इक चाहत की खामोशी है
सन्नाटों की चादर ओढे ये दीवार पुरानी है
उसको पा कर इतराओगे, खो कर जान गंवा दोगे
बादल का साया है दुनिया, हर शै आनी जानी है
दिल अपना इक चांद नगर है, अच्छी सूरत वालों का
शहर में आ कर शायद हमको ये जागीर गंवानी है
तेरे बदन पे मैं फ़ूलों से उस लम्हे का नाम लिखूं
जिस लम्हे का मैं अफ़साना, तू भी एक कहानी है
मंगलवार, अप्रैल 28, 2009
सब कुछ खाक हुआ है लेकिन / बशीर बद्र
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