मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे / बशीर बद्र

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे

हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे

घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते आते ज़माने लगे

कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे

वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

पढाई लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे

0 टिप्पणियाँ: