ख़ानदानी रिश्तों में अक़्सर रक़ाबत है बहुत
घर से निकलो तो ये दुनिया खूबसूरत है बहुत
अपने कालेज में बहुत मग़रूर जो मशहूर है
दिल मिरा कहता है उस लड़की में चाहता है बहुत
उनके चेहरे चाँद-तारों की तरह रोशन हुए
जिन ग़रीबों के यहाँ हुस्न-ए-क़िफ़ायत1 है बहुत
हमसे हो नहीं सकती दुनिया की दुनियादारियाँ
इश्क़ की दीवार के साये में राहत है बहुत
धूप की चादर मिरे सूरज से कहना भेज दे
गुर्वतों का दौर है जाड़ों की शिद्दत2 है बहुत
उन अँधेरों में जहाँ सहमी हुई थी ये ज़मी
रात से तनहा लड़ा, जुगनू में हिम्मत है बहुत
मंगलवार, अप्रैल 28, 2009
ख़ानदानी रिश्तों में अक़्सर रक़ाबत है बहुत / बशीर बद्र
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