मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे / बशीर बद्र

ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे
महफ़िलों महफ़िलों गुनगुनाते रहे

आँसुओं से लिखी दिल की तहरीर को
फूल की पत्तियों से सजाते रहे

ग़ज़लें कुम्हला गईं नज़्में मुरझा गईं
गीत सँवला गये साज़ चुप हो गये

फिर भी अहल-ए-चमन कितने ख़ुशज़ौक़ थे
नग़्मा-ए-फ़स्ल-ए-गुल गुनगुनाते रहे

तेरी साँसों की ख़ुशबू लबों की महक
जाने कैसे हवायें उड़ा लाईं थी

वक़्त का हर क़दम भी बहकता रहा
ज़क़्त ले पाँव भी डगमगाते रहे

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