धूप लिक्खूँ या कहकशाँ लिक्खूँ
तेरे हातों पे आसमाँ लिक्खूँ
तेरी आँखें अगर इजाज़त दें
उनमें सपनों की ठुमरियाँ लिक्खूँ
अपनी ख़ुशियों के कोरे काग़ज़ पर
तेरे अश्कों का तरजुमाँ लिक्खूँ
रेत पर चाँद पर कि लहरों पर
नाम तेरा कहाँ-कहाँ लिक्खूँ
रास्ता हूँ कि नक्श हैं लाखों
किस मुसाफ़िर की दास्ताँ लिक्खूँ
तुझको दे दूँ मिलन की उम्मीदें
अपने हिस्से में दूरियाँ लिक्खूँ
सोमवार, मार्च 08, 2010
धूप लिक्खूँ या कहकशाँ लिक्खूँ
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