तुम ही बताओ क्या वो कोई हादसा न था
मुद्दत से मेरे शहर में कोई हँसा न था
नारे वही, जुलूस वही ,रैलियाँ वही
उस शहरे इन्कलाब में कुछ भी नया न था
गुम्बद में एक ज़ख़्मी अँधेरे की चीख़ था
पर मौन की स्लेट पर कुछ भी गिरा न था
कालोनियाँ नगर की उसे मिल के खा गईं
वो खेत जो किसी का बुरा सोचता न था
ख़ामोशियों के पाँव की हलकी-सी चाप थी
तू जिससे डर गया वो कोई ज़लज़ला न था
सोमवार, मार्च 08, 2010
तुम ही बताओ क्या वो कोई हादसा न था
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