भोला बालक है भला कैसे सताऊँ उसको
राह की भीड़ मे क्यों छोड़ के जाऊँ उसको
दर्द मेरा है किसी खोटी अठन्नी जैसा
सुख के बाज़ार में कैसे मैं चलाऊँ उसको
सर्द रातों में यही चिन्ता रही है मुझको
एक आकाश है ओढ़ूँ कि बिठाऊँ उसको
अजनबी गाँव में ता-उम्र रही ये हसरत
बनके अपना कोई रूठे तो मनाऊँ उसको
एक मिट्टी का दीया और अँधेरा इतना
सोचता हूँ कि जलाऊँ या बुझाऊँ उसको ?
सोमवार, मार्च 08, 2010
भोला बालक है भला कैसे सताऊँ उसको
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