सोमवार, मार्च 08, 2010

इक लफ़्ज़ में जो प्यार का पैग़ाम लिख गया

इक लफ़्ज़ में जो प्यार का पैग़ाम लिख गया
उँगली से रेत पर वो मेरा नाम लिख गया

मिलनी थी जिस गुनाह पे मुझको सज़ाए-मौत
मुंसिफ़ उसी गुनाह पे ईनाम लिख गया

कर्फ़्यू का भूत हाथ में लेकर कलम-दवात
इक खौफ़ज़दा शाम सबके नाम लिख गया

मैं वक़्त के तिलिस्म को समझा नहीं कभी
आग़ाज़ लिख के हाथ पे अंजाम लिख गया

माली भी था अजीब कि वो जिन्स की तरह
फूलों के भाव ख़ुश्बुओं के दाम लिख गया.

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