सोमवार, मार्च 08, 2010

तू है बेचैन बहुत जिसको मनाने के लिए

तू है बेचैन बहुत जिसको मनाने के लिए
वो भी आएगा कभी हाथ मिलाने के लिए

दर्द आएगा दबे पाँव पुरोहित बन कर
दिल के मंदिर में कोई शंख बजाने के लिए

बूँद सूरज के पसीने की उठा लाया हूँ
ज़ुल्मतों की कोई तहरीर मिटाने के लिए

यज्ञ, उपवास, निवेदन किए लाखों हमने
एक रूठे हुए बादल को मनाने के लिए

चुटकुलेबाज़ की क्या ख़ूब अदाकारी थी
रोटियाँ लाया था भूखों को हँसाने के लिए

1 टिप्पणियाँ:

अमिताभ मीत ने कहा…

बूँद सूरज के पसीने की उठा लाया हूँ
ज़ुल्मतों की कोई तहरीर मिटाने के लिए

बहुत खूब ... क्या बात है. बहुत उम्दा शेर कहे हैं ....