गुज़ारे के लिए एक आशियाना कम नहीं होता
महल वालों से छप्पर का ठिकाना कम नहीं होता
मेरे घर जो भी आता है वो बरकत साथ लाता है
परिन्दे छत पे आते हैं तो दाना कम नहीं होता
बहाना ढूँढते हैं आप मिलने का न जाने क्या
हक़ीक़त ये है मिलने का बहाना कम नहीं होता
मुहब्बत ऎसी दौलत है कि जो दिन रात बढ़ती है
लुटाए जाइए लेकिन ख़ज़ाना कम नहीं होता
ज़ुबाँ से बात कह देना बहुत लाज़िम नहीं
अमीरे-शह्र से आँखें मिलाना कम नहीं होता
सोमवार, मार्च 15, 2010
गुज़ारे के लिए एक आशियाना कम नहीं होता
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें