तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए,तुमसे,वो अफ़साने कहाँ जाते
निकलकर दैरो-काबा से अगर मिलता न मैख़ाना
तो ठुकराए हुए इंसाँ खुदा जाने कहाँ जाते
तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाखाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते
चलो अच्छा काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम जमाने-भर को समझाने कहाँ जाते
क़तील अपना मुकद्दर ग़म से बेगाना अगर होता
तो फर अपने पराए हम से पहचाने कहाँ जाते
सोमवार, मार्च 15, 2010
तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें