कल रात इक रईस की बाँहों में झूमकर,
लौटी तो घर किसान की बेटी ब-सद मलाल1,
ग़ैज़ो-ग़जब से2 बाप का खूँ खौलने लगा,
दरपेश3 आज भी था मगर पेट का सवाल।
कल रात इक सड़क पे कोई नर्म-नर्म शै,
बेताब मेरे पाँव की ठोकर से हो गई,
मैं जा रहा था अपने खयालात में मगन,
हल्की-सी एक चीख़ फ़ज़ाओं में4 खो गई।
कल रात इक किसान के घर से धुआँ उठा,
बस्ती में ग़लग़ला5-सा हुआ-आग लग गई,
इस रंज से किसान का दिल पाश-पाश था,
रक्साँ6 थी चौधरी के लबों पर मगर हँसी।
1.अत्यन्त दुख के साथ 2.क्रोधवश 3.सम्मुख 4.वातावरण 5.शोर 6.नृत्यशील
सोमवार, मार्च 15, 2010
तीन कहानियाँ
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