यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो
अपने ही गले के लिये तलवार न माँगो
गिर जाओगे तुम अपने मसीहा की नज़र से
मर कर भी इलाज-ए-दिल-ए-बीमार न माँगो
खुल जायेगा इस तरह निगाहों का भरम भी
काँटों से कभी फूल की महकार न माँगो
सच बात पे मिलता है सदा ज़हर का प्याला
जीना है तो फिर जीने के इज़हार न माँगो
उस चीज़ का क्या ज़िक्र जो मुम्किन ही नहीं है
सहरा में कभी साया-ए-दीवार ना माँगो
सोमवार, मार्च 15, 2010
यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो
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