तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है
इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है
जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला
ज़िन्दगी ने मुझे दाँव पे लगा रखा है
जाने कब आये कोई दिल में झाँकने वाला
इस लिये मैंने ग़िरेबाँ को खुला रखा है
इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैं ने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है
सोमवार, मार्च 15, 2010
तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है
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1 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब, लाजबाब !
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