आवाज़ सुनी मेरी न रूदाद किसी ने
तरजीह न दी मुझको तेरे बाद किसी ने
परवाज़ से उसकी ये गुमाँ हो तो रहा था
पिंजरे से किया है उसे आज़ाद किसी ने
आता ही नहीं सामने पर्दे से निकलकर
वैसे उसे देखा भी है, इक-आद किसी ने
आँखों में उभर आया उसी वक़्त कोई अक़्स
जिस वक़्त किया मुझको कहीं याद किसी ने
दामन मेरा ख़ुशियों से सराबोर है यानी
की होगी मेरे वास्ते फ़रियाद किसी ने
इस शहर का अफ़साना कोई ख़ास नहीं है
आबाद किसी ने किया बरबाद किसी ने
सोमवार, मार्च 15, 2010
आवाज़ सुनी मेरी न रूदाद किसी ने
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