दुनिया से वफ़ा करके सिला ढूँढ रहे हैं
हम लोग भी नदाँ हैं ये क्या ढूँढ रहे हैं
कुछ देर ठहर जाईये बंदा-ए-इन्साफ़
हम अपने गुनाहों में ख़ता ढूँढ रहे हैं
ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं
दुनिया की तमन्ना थी कभी हम को भी 'फ़ाकिर'
अब ज़ख़्म-ए-तमन्ना की दवा ढूँढ रहे हैं
शनिवार, मई 02, 2009
दुनिया से वफ़ा करके
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