जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं
उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है
वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं
हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं
शनिवार, मई 02, 2009
जब भी तन्हाई से घबरा के
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें