शनिवार, मई 02, 2009

ये निकहतों कि नर्म रवी, ये हवा, ये रात

ये निकहतों कि नर्म रवी, ये हवा, ये रात
याद आ रहे हैं इश्क के टूटे ता-अल्लुकात

मासूमियों की गोद में दम तोडता है इश्क
अब भी कोई बना ले तो बिगडी नहीं है बात

इक उम्र कट गई है तेरे इन्तज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट ना सकी जिनसे एक रात

हम अहले-इन्तज़ार के आहट पे कान थे
ठन्डी हवा थी, गम था तेरा, ढल चली थी रात

हर साई-ओ-हर अमल में मोहब्बत का हाथ है
तामीर-ए-ज़िन्दगी के समझ कुछ मुहरकात

अहल-ए-रज़ा में शान-ए-बगावत भी हो ज़रा
इतनी भी ज़िन्दगी ना हो पाबंदगी-ए-रस्मियात

उठ बंदगी से मालिक-ए-तकदीर बन के देख
क्या वसवसा अज़ब का क्या काविश-ए-निज़ात

मुझको तो गम ने फ़ुर्सत-ए-गम भी ना दी फ़िराक
दे फ़ुर्सत-ए-हयात ना जैसे गम-ए-हयात

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