शनिवार, मई 02, 2009

जिस मोड़ पर किये थे हम इंतज़ार बरसों

जिस मोड़ पर किये थे हम इंतज़ार बरसों
उससे लिपट के रोए दीवानावार बरसों



तुम गुलसिताँ से आये ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ ही लाये
हमने कफ़स में देखी फ़स्ल-ए-बहार बरसों



होती रही है यूँ तो बरसात आँसूओं की
उठते रहे हैं फिर भी दिल से ग़ुबार बरसों



वो संग-ए-दिल था कोई बेगाना-ए-वफ़ा था
करते रहें हैं जिसका हम इंतज़ार बरसों

2 टिप्पणियाँ:

राकेश कश्यप ने कहा…

बहूत अच्छे सौरभ... उम्दा काम कर रहे हो.. साहित्य और लेखन को सहेजने की जो बीड़ा तुमने उठाई है... वो निसंदेह: साहित्य और गज़लों की तुम्हारी रूची को उजागर करता है... साथ ही मुझे इस बात की भी खुशी है कि तुमने... तकनीक के सहारे अपने विचार थोपने की परंपरा से खुद को अलग रखा है... इसलिए लगे हो मेरे भाई...तुम्हारी हर पोस्ट का स्वागत है....

सौरभ कुणाल ने कहा…

स्याह पर आपका स्वागत है राकेश भाई.. आशा है कि आपको आगे भी अच्छी रचनाएं मिलती रहेंगी....