शनिवार, मई 02, 2009

ब्रज के लुटैया का बालपन / नज़ीर अकबराबादी

यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन

अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।

मोहन-स्‍वरूप नृत्‍य, कन्‍हैया का बालपन

बन बन के ग्‍वाल घूमे, चरैया का बालपन

ऐसा था, बांसुरी के बजैया का बालपन

क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन

अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।




ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे

वरना वो आप ही माई थे और आप ही बाप थे

परदे में बालपन के ये उनके मिलाप थे

ज्‍योतिस्‍वरूप कहिए जिन्‍हें, सो वो आप थे

ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन

अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन

क्‍या क्‍या कहूं ।।




उनको तो बालपन से ना था काम कुछ ज़रा

संसार की जो रीत थी उसको रखा बचा

मालिक थे वो तो आप ही, उन्‍हें बालपन से क्‍या

वां बालपन जवानी बुढ़ापा सब एक सा

ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन

अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।

क्‍या क्‍या कहूं ।।




बाले थे ब्रजराज जो दुनिया में आ गये

लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गये

इस बालपन के रूप में कितना भा गये

एक ये भी लहर थी जो जहां को जता गये

यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन

अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन

क्‍या क्‍या कहूं ।।




परदा ना बालपन का अगर वो करते जरा

क्‍या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता

झाड़ और पहाड़ ने भी सभी अपना सर झुका

पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था

ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन

अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन

क्‍या क्‍या कहूं ।।

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