इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया
रोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रोलें
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया
एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें "फ़ाकिर"
हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया
शनिवार, मई 02, 2009
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें