बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
मैं समन्दर देखती हूँ तुम किनारा देखना
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
जाते जाते उस का वो मुड़ के दुबारा देखना
किस शबाहत को लिये आया है दरवाज़े पे चाँद
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़रा अपना सितारा देखना
आईने की आँख ही कुछ कम न थी मेरे लिये
जाने अब क्या क्या दिखायेगा तुम्हारा देखना
शुक्रवार, मई 29, 2009
बादबाँ खुलने से पहले का
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