शुक्रवार, मई 29, 2009

पिरो दिये मेरे आंसू हवा ने शाख़ों में

पिरो दिये मेरे आंसू हवा ने शाखों में

भरम बहार का बाक़ी रहा निगाहों में


सबा तो क्या कि मुझे धूप तक जगा न सकी

कहां की नींद उतर आयी है इन आंखों में


कुछ इतनी तेज़ है सुर्ख़ी कि दिल धड़कता है

कुछ और रंग पसे-रंग है गुलाबों में


सुपुर्दगी का नशा टूटने नहीं पाता

अना समाई हुई है वफ़ा की बांहों में


बदन पर गिरती चली जा रही है ख़्वाब-सी बर्फ़

खुनक सपेदी घुली जा रही है सांसों में




सबा=सुबह की हवा; पसे-रंग=रंग के पीछे;
अना=अहम; सपेदी=सफ़ेदी

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