शुक्रवार, मई 29, 2009

अपनी रुसवाई तेरे नाम

अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ
एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ



नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ
आँख खुल जाये तो तन्हाई की सहर देखूँ



शाम भी हो गई धुंधला गई आँखें भी मेरी
भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ



सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ
एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ



मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह
अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ



तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब
जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ



मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार
ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ



तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात
जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ

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