शुक्रवार, मई 29, 2009

एक मंज़र

कच्चा-सा इक मकां, कहीं आबादियों से दूर

छोटा-सा इक हुजरा, फ़राज़े-मकान पर

सब्ज़े से झांकती हुई खपरैल वाली छत

दीवारे-चोब पर कोई मौसम की सब्ज़ बेल

उतरी हुई पहाड़ पर बरसात की वह रात

कमरे में लालटेन की हल्की-सी रौशनी

वादी में घूमता हुआ इक चश्मे-शरीर[१]

खिड़की को चूमता हुआ बारिश का जलतरंग

सांसों में गूंजता हुआ इक अनकही का भेद !

शब्दार्थ:

↑ शरारती झरना

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