शुक्रवार, मई 29, 2009

पूरा दुख और आधा चांद

पूरा दुख और आधा चांद
हिज्र की शब और ऐसा चांद



इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चांद



मेरी करवट पर जाग उठे
नींद का कितना कच्चा चांद



सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चांद



रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चांद

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