हो न रंगीन तबीयत भी किसी की या रब
आदमी को यह मुसीबत में फँसा देती है
निगहे-लुत्फ़ तेरी बादे-बहारी है मगर
गुंचए-ख़ातिरे-आशिक़ को खिला देती है
शनिवार, मार्च 13, 2010
हो न रंगीन तबीयत
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हो न रंगीन तबीयत भी किसी की या रब
आदमी को यह मुसीबत में फँसा देती है
निगहे-लुत्फ़ तेरी बादे-बहारी है मगर
गुंचए-ख़ातिरे-आशिक़ को खिला देती है
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