जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं।
वो कमयाब है जो कमयाब हो न सका॥
बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से।
चमन में आके भी काँटा गुलाब हो न सका॥
... .... ...
उदू न भी मगर अन्धी ज़रूर थी बिजली।
कि देखे फूल न पत्ते न आशियाँ देखा॥
शनिवार, मार्च 13, 2010
जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें