शनिवार, मार्च 13, 2010

साँस लेते हुए भी डरता हूँ

साँस लेते हुए भी डरता हूँ
ये न समझें कि आह करता हूँ



बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब
मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ



बहर-ए-हस्ती = जीवन सागर
हुबाब = बु्लबुला



इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है
साँस लेता हूँ बात करता हूँ



शेख़ साहब खुदा से डरते हो
मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ



आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज
शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ



ये बड़ा ऐब मुझ में है 'अकबर'
दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ

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