नैरंगियाँ चमन की तिलिस्मे-फ़रेब हैं।
उस जा भटक रहा हूँ जहाँ आशियाँ न था॥
पाबंदियों ने खोल दी आँखें तो समझे हम।
आकर क़फ़स में बस गए थे आशियाँ न था॥
जो दर्द मिटते-मिटते भी मुझको मिटा गया।
क्या उसका पूछना कि कहाँ था कहाँ न था॥
अब तक वो चारासाज़िए-चश्मेकरम है याद।
फाहा वहाँ लगाते थे, चरका जहाँ न था॥
शनिवार, मार्च 13, 2010
नैरंगियाँ चमन की तिलिस्मे-फ़रेब हैं
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