तहज़ीब के ख़िलाफ़ है जो लाये राह पर
अब शायरी वह है जो उभारे गुनाह पर
क्या पूछते हो मुझसे कि मैं खुश हूँ या मलूल
यह बात मुन्हसिर[1] है तुम्हारी निगाह पर
शब्दार्थ:
↑ टिकी
शनिवार, मार्च 13, 2010
तहज़ीब के ख़िलाफ़ है
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