ज़माने से नाज़ अपने उठवानेवाले।
मुहब्बत का बोझ आप उठाना पड़ेगा॥
सज़ा तो बजा है, यह अन्धेर कैसा?
ख़ता को भी जो ख़ुद बताना पड़ेगा॥
मुहब्बत नहीं, आग से खेलना है।
लगाना पड़ेगा, बुझाना पड़ेगा॥
शनिवार, मार्च 13, 2010
ज़माने से नाज़ अपने उठवानेवाले
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें