मय भी होटल में पियो,चन्दा भी दो मस्जिद में
शेख़ भी ख़ुश रहे, शैतान भी बेज़ार न हो
ऐश का भी ज़ौक़ दींदारी की शुहरत का भी शौक़
आप म्यूज़िक हाल में क़ुरआन गाया कीजिये
गुले तस्वीर किस ख़ूबी से गुलशन में लगाया है
मेरे सैयाद ने बुलबुल को भी उल्लू बनाया है
मछली ने ढील पाई है लुक़में पे शाद है
सैयद मुतमइन है कि काँटा निगल गई
ज़वाले क़ौम की इन्तिदा वही थी कि जब
तिजारत आपने की तर्क नौकरी कर ली
शनिवार, मार्च 13, 2010
हास्य-रस -छ:
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1 टिप्पणियाँ:
ज़वाले कौम की इब्तेदा...
पहली बार आया आपकी पोस्ट पर.... बहुत बढिया काम कर रहे हैं आप :)
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