इक जाम-ए-बोसीदा हस्ती[1] और रूह अज़ल[2] से सौदाई[3]।
यह तंग लिबास न यूँ चढ़ता ख़ुद फाड़ के हमने पहना है॥
हिचकी में जो उखड़ी साँस अपनी घबरा के पुकारी याद उसकी।
"फिर जोड़ ले यह टूटा रिश्ता इक झटका और भी सहना है"॥
शब्दार्थ:
↑ शरीर रूपी गली-सड़ी पोशाक
↑ प्रारम्भ
↑ दीवानी
शनिवार, मार्च 13, 2010
इक जाम-ए-बोसीदा हस्ती और रूह अज़ल से सौदाई
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