शनिवार, मार्च 13, 2010

मौजों का अक्स है, ख़त-ए-जाम-ए-शराब में

मौजों का अक्स है, ख़त-ए-जाम-ए-शराब में
या ख़ून उछल रहा है, रग-ए-माहताब में

वो मौत है कि कहते हैं, जिसको सुकून सब
वो ऐन ज़िन्दगी है,जो है इज़्तराब में

दोज़ख़ भी एक जल्वा-ए-फ़िरदौस-ए-हुस्न है
जो इस से बेख़बर हैं, वही हैं अज़ाब में

उस दिन भी मेरी रूह थी, मह्व-ए-निशात-ए-दीद
मूसा उलझ गए थे, सवाल-ओ-जवाब में

मैं इज़्तराब-ए-शौक़ कहूँ या जमाल-ए-दोस्त
इक बर्क़ है जो कौंध रही है नक़ाब में

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