मुझ ग़मज़दा के पास से सब रो के उठे हैं।
हाँ आप इक ऐसे हैं कि ख़ूश होके उठे हैं॥
मुँह उठके तो सब धोते हैं ऐ दीदये-खूंबाज़।
बिस्तर से हम उठे हैं तो मुँह धोके उठे हैं॥
शनिवार, मार्च 13, 2010
मुझ ग़मज़दा के पास से सब रो के उठे हैं
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें