शनिवार, मार्च 13, 2010

मुंशी कि क्लर्क या ज़मींदार

मुंशी कि क्लर्क या ज़मींदार
लाज़िम है कलेक्टरी का दीदार



हंगामा ये वोट का फ़क़त है
मतलूब हरेक से दस्तख़त है



हर सिम्त मची हुई है हलचल
हर दर पे शोर है कि चल-चल



टमटम हों कि गाड़ियां कि मोटर
जिस पर देको, लदे हैं वोटर



शाही वो है या पयंबरी है
आखिर क्या शै ये मेंबरी है



नेटिव है नमूद ही का मुहताज
कौंसिल तो उनकी हि जिनका है राज



कहते जाते हैं, या इलाही
सोशल हालत की है तबाही



हम लोग जो इसमें फंस रहे हैं
अगियार भी दिल में हंस रहे हैं



दरअसल न दीन है न दुनिया
पिंजरे में फुदक रही है मुनिया



स्कीम का झूलना वो झूलें
लेकिन ये क्यों अपनी राह भूलें



क़ौम के दिल में खोट है पैदा
अच्छे अच्छे हैं वोट के शैदा



क्यो नहीं पड़ता अक्ल का साया
इसको समझें फ़र्जे-किफ़ाया



भाई-भाई में हाथापाई
सेल्फ़ गवर्नमेंट आगे आई



पंव का होश अब फ़िक्र न सर की
वोट की धुन में बन गए फिरकी

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