न यह कहो "तेरी तक़दीर का हूँ मैं मालिक।
बनो जो चाहो ख़ुदा के लिए, ख़ुदा न बनो॥
अगर है जुर्मे-मुहब्बत तो ख़ैर यूँ ही सही।
मगर तुम्हीं कहीं इस जुर्म की सज़ा न बनो॥
मिले भी कुछ तो है बेहतर तलब से इस्तग़ना[1]।
बनो तो शाह बनो, ‘आरज़ू’! गदा[2] न बनो॥
शब्दार्थ:
↑ सन्तोष
↑ भिक्षुक
शनिवार, मार्च 13, 2010
न यह कहो "तेरी तक़दीर का हूँ मै मालिक"
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