गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

आँखों में हैं दुख भरे फ़साने

आँखों में हैं दुख भरे फ़साने
रोने के फिर आ गये ज़माने



फिर दर्द ने आज राग छेड़ा
लौट आये वही समय पुराने



फिर चाँद को ले गयीं हवाएँ
फिर बाँसुरी छेड़ दी सबा ने



रस्तों में उदास खुशबुओं के
फूलों ने लुटा दिये ख़जाने

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