गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

नदी के मस्त धारे जानते हैं

नदी के मस्त धारे जानते हैं

समंदर के इशारे जानते हैं


सहारा कौन दे सकता है उनको

ये अक्सर बेसहारे जानते हैं


धरा से उनकी बेहद दूरियाँ हैं

गगन के चाँद—तारे जानते हैं


किसी बिरहन ने कितनी बार खोले

ये उसके घर के द्वारे जानते हैं


हमारी ख़ूबियों और ख़ामियों को

हमारे दोस्त सारे जानते हैं


चला समवेत स्वर में उनका जादू

ये हर दल—बल के नारे जानते हैं


धरम का अर्थ ‘गुरू’ के बाद केवल

निकटतम ‘पंच—प्यारे’ जानते हैं

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