रंग बरसात ने भरे कुछ तो
ज़ख़्म दिल के हुए हरे कुछ तो
फुर्सत-ए-बेखुदी1 ग़नीमत है
गर्दिशें हो गयीं परे कुछ तो
कितने शोरीदा-सर2 थे परवाने
शाम होते ही जल मरे कुछ तो
ऐसा मुश्किल नहीं तिरा मिलना
दिल मगर जुस्तजू करे कुछ तो
आओ ‘नासिर’ कोई ग़ज़ल छेड़ें
जी बहल जाएगा अरे कुछ तो
गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010
रंग बरसात ने भरे कुछ तो
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