ख़त्म हुआ तारों का राग
जाग मुसाफ़िर अब तो जाग
धूप की जलती तानों से
दश्त-ए-फ़लक1 में लग गई आग
दिन का सुनहरा नग्मा सुनकर
अबलक़-ए-शब2 ने मोड़ी बाग
कलियाँ झुलसी जाती हैं
सूरज फेंक रहा है आग
ये नगरी अँधियारी है
इस नगरी से जल्दी भाग
गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010
ख़त्म हुआ तारों का राग
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