गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

तुम पर अगर सितारों जड़ा आसमान है

तुम पर अगर सितारों जड़ा आसमान है

अपनी धरा के पास भी हीरों की खान है


ये देखना है— कैसे चलाते हो तीर तुम

हाथों में इस समय तो हमारे कमान है


कड़वा रहा अतीत, अनिश्चित मिला भविष्य

अपना तो मूलधन भी यही वर्तमान है


वे कैसे दौड़ पाएँगे आकाश—मार्ग पर

जिनके ‘परों’ में आज ही कल की थकान है


मेरे ‘बयान’ तुम नहीं जारी करोगे अब

मेरा ‘बयान’ आज से मेरा बयान है


संघर्ष खत्म करने का दो दुश्मनों के पास

क्या संधि के अलावा भी कोई निदान है ?


अब तुम पहँच गए हो शिखर पर, ये सत्य है,

लेकिन शिखर के आगे तो केवल ढलान है

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