नीयत-ए-शौक़ भर न जाये कहीं
तू भी दिल से उतर न जाये कहीं
आज देखा है तुझे देर के बाद
आज का दिन गुज़र न जाये कहीं
न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाये कहीं
आरज़ू है के तू यहाँ आये
और फिर उम्र भर न जाये कहीं
जी जलाता हूँ और ये सोचता हूँ
रायेगाँ ये हुनर न जाये कहीं
आओ कुछ देर रो ही लें "नासिर"
फिर ये दरिया उतर न जाये कहीं
गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010
नीयत-ए-शौक़ भर न जाये कहीं
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