घर में रहकर भी नहीं संवाद हम दोनों के बीच
मौन पसरा है कई हफ्तों से, संबंधों के बीच
फँस गई है बीच में बत्तीस दाँतों के जुबान
फिर भी, चुप रहती नहीं है, जान के खतरों के बीच
सोचता हूँ कोई गुस्सा क्यों जनम लेता नहीं
मुख्य—धारा से अलग होते हुए लोगों के बीच
दिल पे रख कर हाथ , अपनी धड़कनें सुनते रहें
ये जरूरी है बहुत, जीते हुए यंत्रों के बीच
हम इसी कारण, विगत के गाँव तक जाते नहीं
गाँव में घुसते ही ,फँस जाते हैं हम यादों के बीच
बिजलियाँ भी दर्ज करती ही रहीं अपना विरोध,
छेड़खानी पर तुले मेघों के हुड़दंगों के बीच
शेर समकालीन कविता—से न बातूने सही
फिर भी, कह जाते हैं गहरी बात, संकेतों के बीच
गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010
घर में रहकर ही नहीं संवाद हम दोनों के बीच
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