गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

आँखों से सिर्फ सच नहीं, सपना भी देखिए

आँखों से सिर्फ सच नहीं, सपना भी देखिए

कलियों का रूप—रंग महकना भी देखिए


सब लोग ही पराए हैं, ये बात सच नहीं

दुनिया की भीड़ में कोई अपना भी देखिए


नदियों को सिर्फ पानी ही पानी न मानिए

नदियों का गीत गाना थिरकना भी देखिए


बरखा की स्याह रात में उम्मीद की तरह

निर्भीक जुगनुओं का चमकना भी देखिए


पत्थर का दिल पसीजते देखा न हो अगर

तो बर्फ की शिलाओं का गलना भी देखिए


जो चुभ रहे हैं —शूल हैं,ये अर्द्ध—सत्य है

इन नर्म—नर्म फूलों का चुभना भी देखिए

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