गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं

तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं
मगर ये लोग पागल हो गये हैं

बहारें लेके आये थे जहाँ तुम
वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं

यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती
कि दिल के हौसले शल हो गये हैं

कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल
कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं

निगाह-ए-यास को नींद आ रही है
मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं

उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं

जिन्हें हम देख कर जीते थे "नासिर"
वो लोग आँखों से ओझल हो गये हैं

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