गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

करता उसे बेकरार कुछ देर

करता उसे बेकरार कुछ देर
होता अगर इख्तियार कुछ देर



क्या रोयें फ़रेब-ए-आसमाँ को
अपना नहीं ऐतबार कुछ देर



आँखों में कटी पहाड़ सी रात
सो जा दिल-ए-बेक़रार कुछ देर



ऐ शहर-ए-तरब को जाने वालों
करना मेरा इंतजार कुछ देर



बेकैफी-ए-रोज़-ओ-शब मुसलसल
सरमस्ती-ए-इंतज़ार कुछ देर



तकलीफ-ए-गम-ए-फिराक दायम
तकरीब-ए-विसाल-ए-यार कुछ देर



ये गुंचा-ओ-गुल हैं सब मुसाफिर
है काफिला-ए-बहार कुछ देर



दुनिया तो सदा रहेगी नासिर
हम लोग हैं यादगार कुछ देर

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