आपसे बेहद मुहब्बत है मुझे
आप क्यों चुप हैं ये हैरत है मुझे
शायरी मेरे लिए आसाँ नहीं
झूठ से वल्लाह नफ़रत है मुझे
रोज़े-रिन्दी[1] है नसीबे-दीगराँ[2]
शायरी की सिर्फ़ क़ूवत[3] है मुझे
नग़मये-योरप से मैं वाक़िफ़ नहीं
देस ही की याद है बस गत मुझे
दे दिया मैंने बिलाशर्त उन को दिल
मिल रहेगी कुछ न कुछ क़ीमत मुझे
शब्दार्थ:
↑ शराब पीने का दिन
↑ दूसरों की क़िस्मत में
↑ ताक़त
शनिवार, मार्च 13, 2010
आपसे बेहद मुहब्बत है मुझे
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें